मिरी आँखों में आ दिल में उतर पैवंद-ए-जाँ हो जा
मिरी आँखों में आ दिल में उतर पैवंद-ए-जाँ हो जा
मैं बेनाम-ओ-निशाँ हूँ तू मिरा नाम-ओ-निशाँ हो जा
कभी तो आख़िर-ए-शब फूल सा खिल मेरे आँगन में
कभी मेरे नवाह-ए-जिस्म में ख़ूशबू-ए-जाँ हो जा
तू मेरे दश्त-ए-हर्फ़-ओ-सौत को बर्ग-ए-ख़मोशी दे
तू मेरी आँख में गुम-गश्ता-ए-हैरत-निशाँ हो जा
मगर ये ज़ात का बन-बास कब तक भोगना होगा
किसी पर्बत के पीछे से बुला, कुछ मेहरबाँ हो जा
मिरी रातों को क़तरा क़तरा शबनम बाँटने वाले
कभी मानिंद-ए-दरिया मेरी आँखों से रवाँ हो जा
वो देखो कहकशाँ सा इक जज़ीरा मुंतज़िर अपना
मुझे नय्या बना अपनी तू मेरा बादबाँ हो जा
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