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दुनिया से हर रिश्ता तोड़ा ख़ुद से रु-गर्दानी की - अहमद शहरयार कविता - Darsaal

दुनिया से हर रिश्ता तोड़ा ख़ुद से रु-गर्दानी की

दुनिया से हर रिश्ता तोड़ा ख़ुद से रु-गर्दानी की

सिर्फ़ तुम्हारा ध्यान रखा और जीने में आसानी की

मजनूँ और फ़रहाद हुए जब इश्क़ में सब बर्बाद हुए

तब जंगल ने कूच किया सहरा ने नक़्ल-ए-मकानी की

उस की मोहनी सूरत जैसे फूलों का आमेज़ा है

और उस की आवाज़ है गोया रे-गामा-पा-धानी की

भूली-बिसरी याद ने जब दरयाफ़्त किया अहवाल मिरा

दिल ने ज़ख़्म कलाम किया आँखों ने अश्क-बयानी की

इल्म का दम भरना छोड़ो भी और अमल को भूल भी जाओ

आईना-ख़ाने में हो साहिब फ़िक्र करो हैरानी की

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