अहमद शहरयार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद शहरयार
नाम | अहमद शहरयार |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Shahryar |
जन्म की तारीख | 1983 |
जन्म स्थान | Iran |
तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है
समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
क़तरा ठीक है दरिया होने में नुक़सान बहुत है
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात
जल उठें यादों की क़ंदीलें, सदाएँ डूब जाएँ
इल्म का दम भरना छोड़ो भी और अमल को भूल भी जाओ
हमारे शहर की रिवायतों में एक ये भी था
हद्द-ए-गुमाँ से एक शख़्स दूर कहीं चला गया
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
अभी हमें गुज़ारनी है एक उम्र-ए-मुख़्तसर
यादों की तज्सीम पे मेहनत होती है
वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है
राज़-ए-दरून-ए-आस्तीं कश्मकश-ए-बयाँ में था
फैल रहा है ये जो ख़ाली होने का डर मुझ में
नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी
कुन-फ़यकूं का हासिल यानी मिट्टी आग हवा और पानी
ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को
इनइकास-ए-तिश्नगी सहरा भी है दरिया भी है
गुमान के लिए नहीं यक़ीन के लिए नहीं
ग़ुबार-ए-वक़्त के गर आर-पार देखिएगा
दुनिया से हर रिश्ता तोड़ा ख़ुद से रु-गर्दानी की
दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
अश्क भेजें मौज उभारें अब्र जारी कीजिए
आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम