अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी
नाम | अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Sagheer Siddiqui |
ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं
ये क्या कि आशिक़ी में भी फ़िक्र-ए-ज़ियाँ रहे
उसी ख़ातिर हटा ली है मसाइल से तवज्जोह
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताज
तख़्लीक़ ख़ुद किया था कल अपने में एक घर
सुनता है यहाँ कौन समझता है यहाँ कौन
सारी दुनिया से अलग वहशत-ए-दिल है अपनी
पर्दा जो उठा दिया गया है
कुछ देर में ये दिल किसी गिनती में न होगा
कोई तस्वीर बना ले कि तुझे याद रहें
किसी सूरत ये नुक्ता-चीनियाँ कुछ रंग तो लाईं
ख़ुद अपनी ज़ात से इक मुक़तदी निकालता हूँ
खोलीं वो दर किसी ने भी खोला न हो जिसे
कहाँ मैं और कहाँ गोशा-नशीनी का ये एलान
कभी न बदले दिल-ए-बा-सफ़ा के तौर-तरीक़
कब से मैं सफ़र में हूँ मगर ये नहीं मा'लूम
जी-भर के सितारे जगमगाएँ
इश्क़ इक मशग़ला-ए-जाँ भी तो हो सकता है
इस इश्क़ में न पूछो हाल-ए-दिल-ए-दरीदा
हम कि इक उम्र रहे इश्वा-ए-दुनिया के असीर
गर्द की तरह सर-ए-राहगुज़र बैठे हैं
चराग़ उन पे जले थे बहुत हवा के ख़िलाफ़
चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम
आना ज़रा तफ़रीह रहेगी
हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे
इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है
इक जिस्म हैं कि सर से जुदा होने वाले हैं
और सी धूप घटा और सी रक्खी हुई है
आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं