Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_14cd69e7fdc3d01c4a96cf914745cc02, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
बात करने का नहीं सामने आने का नहीं - अहमद रिज़वान कविता - Darsaal

बात करने का नहीं सामने आने का नहीं

बात करने का नहीं सामने आने का नहीं

वो मुझे मेरी अज़िय्यत से बचाने का नहीं

दूर इक शहर है जो पास बुलाता है मुझे

वर्ना ये शहर कहीं छोड़ के जाने का नहीं

क्या यूँही रात के पहलू में कटेगी ये हयात

क्या कोई शहर के लोगों को जगाने का नहीं

अजनबी लोग हैं मैं जिन में घिरा रहता हूँ

आश्ना कोई यहाँ मेरे फ़साने का नहीं

ये जो इक शहर है ये जिस पे तसर्रुफ़ है मिरा

मैं यहाँ कोई भी दीवार बनाने का नहीं

बाद मुद्दत के जो आया था वही लौट गया

अब यहाँ कोई चराग़ों को जलाने का नहीं

आने वाली है नई सुब्ह ज़रा देर के बाद

क्या कोई राह-ए-तमन्ना को सजाने का नहीं

(806) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin In Hindi By Famous Poet Ahmad Rizwan. Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin is written by Ahmad Rizwan. Complete Poem Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin in Hindi by Ahmad Rizwan. Download free Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin Poem for Youth in PDF. Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Baat Karne Ka Nahin Samne Aane Ka Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.