हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो

हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो

हम से वाबस्ता है ता'मीर-ए-बहाराँ यारो

क़ुरबत-ए-काकुल-ओ-रुख़सार से जी तंग नहीं

इक ज़रा चैन तो दे गर्दिश-ए-दौराँ यारो

लाख हम मरहला-ए-दार-ओ-रसन से गुज़रे

ज़िंदगी से न हुए फिर भी गुरेज़ाँ यारो

इक थका ख़्वाब कि सीने में सुलगता है अभी

इक दबी याद कि है नीश-ए-रग-ए-जाँ यारो

आमद-ए-सुब्ह से मायूस नहीं हैं लेकिन

डस न ले तीरगी-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ यारो

और कुछ दूर कि थोड़ी है रह-ए-जौर-ओ-सितम

और कुछ देर कि टूटा दर-ए-ज़िंदाँ यारो

अपना दुख हो तो 'रियाज़' उस का मुदावा करते

हैं सभी शो'ला-ब-जाँ चाक-ए-गरेबाँ यारो

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