क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले
आज महफ़िल में तिरे नाम पे पैमाने चले
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Gulzar
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मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं
ज़िंदगी
मिरे हबीब मिरी मुस्कुराहटों पे न जा
कोई माज़ी के झरोकों से सदा देता है
ज़िंदगी के वो किसी मोड़ पे गाहे गाहे
लम्हा लम्हा शुमार कौन करे
लब-ए-गोया
कभी हयात का ग़म है कभी तिरा ग़म है
कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
दिल के वीरान रास्ते भी देख
तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है