ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
मैं तिरी जुदाई में इस तरह भी रोता हूँ
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(941) Peoples Rate This
कभी तिरी कभी अपनी हयात का ग़म है
ग़म-गुसारी
ज़िंदगी के वो किसी मोड़ पे गाहे गाहे
दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
दर्द-ए-मुश्तरक
मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं
आम है कूचा-ओ-बाज़ार में सरकार की बात
तन्हाइयों के दश्त में अक्सर मिला मुझे
मिरे हबीब मिरी मुस्कुराहटों पे न जा
दर्द की बात किसी हँसती हुई महफ़िल में
तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है
दिल के वीरान रास्ते भी देख