हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस ने
जो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
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दिल के वीरान रास्ते भी देख
ग़म-गुसारी
मिरे हबीब मिरी मुस्कुराहटों पे न जा
कोई माज़ी के झरोकों से सदा देता है
क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले
ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
सराब
सरगोशी
दिन गुज़रता है कहाँ रात कहाँ होती है
ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए
महफ़िल महफ़िल सन्नाटे हैं