दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ
तू मिरी तमन्ना है मैं तिरा तमाशा हूँ
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कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में
वक़्त की क़ब्र में उल्फ़त का भरम रखने को
ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
दर्द-ए-मुश्तरक
तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है
एक उम्र होती है
लब-ए-गोया
कब तक बोझल पलकों से अश्कों के सितारे टूटेंगे
दिल से दिल नज़रों से नज़रों के उलझने का समाँ
गर्दिश-ए-जाम नहीं गर्दिश-ए-अय्याम तो है