दिल से दिल नज़रों से नज़रों के उलझने का समाँ
जैसे सहराओं में नींद आई हो दीवानों को
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
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Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं
जिस राह से भी गुज़र गए हम
गर्दिश-ए-जाम नहीं गर्दिश-ए-अय्याम तो है
दिन को रहते झील पर दरिया किनारे रात को
मैं सोचता हूँ ज़माने का हाल क्या होगा
जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में
कभी हयात का ग़म है कभी तिरा ग़म है
वक़्त की बात
ज़िंदगी
मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं
वो बे-नियाज़ मुझे उलझनों में डाल गया
कल और आज