दर्द की बात किसी हँसती हुई महफ़िल में
जैसे कह दे किसी तुर्बत पे लतीफ़ा कोई
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दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा
क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले
कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं
ग़म-गुसारी
दिल से दिल नज़रों से नज़रों के उलझने का समाँ
सरगोशी
दिन को रहते झील पर दरिया किनारे रात को
वो दास्ताँ जो तिरी दिल-कशी ने छेड़ी थी
कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है
हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस ने
कल और आज