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सराब - अहमद राही कविता - Darsaal

सराब

मैं जहाँ था

वहाँ तीरगी थी ख़मोशी थी अफ़्सुर्दगी थी

मिरे कान नग़्मों से महरूम थे

सिसकियाँ मेरे होंटों की मीरास थीं

मेरी आँखें किसी सैल-ए-पुर-नूर की मुंतज़िर थीं

मिरी ज़िंदगी राख का ढेर थी

मैं यहाँ आ गया

इस तरह ख़ुल्द में

उस मुसलसल अज़िय्यत से काहिश से बचने की ख़ातिर

कि जिस से फ़क़त एक मैं ही नहीं

मेरे जैसे कई और भी जाँ-ब-लब थे

तिरा ख़ुल्द मेरे लिए

मेरे जैसे कई दूसरों के लिए

रौशनी नग़्मगी सरख़ुशी की अलामत था ये!

मैं जहाँ हूँ

वहाँ तीरगी है ख़मोशी है अफ़्सुर्दगी है

मिरे कान नग़्मों से महरूम हैं

सिसकियाँ मेरे कानों की मीरास हैं

मेरी आँखें किसी सैल-ए-पुर-नूर की मुंतज़िर हैं

मेरी ज़िंदगी राख का ढेर है!

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Sarab In Hindi By Famous Poet Ahmad Rahi. Sarab is written by Ahmad Rahi. Complete Poem Sarab in Hindi by Ahmad Rahi. Download free Sarab Poem for Youth in PDF. Sarab is a Poem on Inspiration for young students. Share Sarab with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.