नज़्म

बहुत ज़रूरी बात इक तुम से करना थी

लेकिन तुम को जल्दी बहुत थी जाने की

कहना ये था हम तो मशरिक़ मग़रिब हैं

मेरे हाँ तो कोई ड्राइंग-रूम नहीं

कोई बैरा न कोई बटलर न कोई मामाँ-शामाँ

कोई गेराज न कोई कार कोई ड्राईवर न ख़ानसामाँ

एक ही कमरा है जो मेरी स्टडी भी है बेडरूम भी है और

ड्राइंग-रूम भी मेरा

मैं इक कमरे में रहता हूँ

अपने अंदर रहता हूँ

अपने अंदर रह कर भी मैं इक दुनिया में रहता हूँ

जभी कहा था हम तो मशरिक़ मग़रिब हैं

मशरिक़ मग़रिब में जो फ़र्क़ है

ये वो ग़ुलाम ही जानें

दो ढाई सौ साल ग़ुलामी की जो बेड़ियाँ

काटते काटते क़ब्रों में जा सोए

हाए अल्लाह उन जैसा बद-क़िस्मत कोई और यहाँ

न हुए

अच्छा किया तुम चली गईं

मेरी बातों में कुछ तल्ख़ी आ गई है

तेरे आबा ने मेरे आबा पर जो ज़ुल्म किया है

वो तो मेरी माँ के दूध ने मुझे विरासत

में बख़्शा है

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Nazm In Hindi By Famous Poet Ahmad Rahi. Nazm is written by Ahmad Rahi. Complete Poem Nazm in Hindi by Ahmad Rahi. Download free Nazm Poem for Youth in PDF. Nazm is a Poem on Inspiration for young students. Share Nazm with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.