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एक उम्र होती है - अहमद राही कविता - Darsaal

एक उम्र होती है

एक उम्र होती है

जिस में कोई लड़का हो

या वो कोई लड़की हो

सोचते हैं दोनों ही

हम ही हर्फ़-ए-अव्वल हैं

इस जहान-ए-कोहना को

अपनी फ़िक्र-ए-नौ से हम

इक लगन की लौ से हम

जिस तरह का चाहेंगे

वैसा ही बना लेंगे

पत्थरों को मर-मर के

पैकरों में ढालेंगे

एक उम्र होती है

जिस में कोई लड़का हो

या कोई लड़की हो

सोचते हैं दोनों ही

कितने अज़्म थे अपने

नज़्र-ए-ख़ाक हैं सारे

बात दामनों की क्या

चाक चाक दिल भी हैं

हम कि हर्फ़-ए-अव्वल थे

हर्फ़-ए-आख़िरीं भी नहीं

हम कि आसमाँ से थे

ज़र्रा-ए-ज़मीं भी नहीं

एक उम्र होती है

ख़्वाहिशों की जज़्बों की

एक उम्र होती है

काहिशों की सदमों की

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