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मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं - अहमद राही कविता - Darsaal

मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं

मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं

कि दर्द-ए-इश्क़ के अब दावेदार वो भी हैं

हुआ है जिन के करम से दिल ओ नज़र का ज़ियाँ

ब-फ़ैज़-ए-वक़्त मिरे ग़म-गुसार वो भी हैं

शहीद जज़्बों की फ़हरिस्त क्या मुरत्तब हो

शुमार में जो नहीं बे-शुमार वो भी हैं

दिल-ए-तबाह! ये आसार हैं क़यामत के

रहीन-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार वो भी हैं

हरीम-ए-हुस्न की तज़ईन थे जो पैकर-ए-नाज़

ब-हाल-ए-ज़ार सर-ए-रहगुज़ार वो भी हैं

वो जिन से आम हुई दास्तान-ए-अहद-ए-जुनूँ

तिरे गुनह दिल-ए-ना-कर्दा-कार वो भी हैं

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