महफ़िल महफ़िल सन्नाटे हैं
महफ़िल महफ़िल सन्नाटे हैं
दर्द की गूँज पे कान धरे हैं
दिल था शोर था हंगामे थे
यारो हम भी तुम जैसे हैं
मौज-ए-हवा में आग भरी है
बहते दरिया खौल उठे हैं
अरमानों के नर्म शगूफ़े
शाख़ों के हम-राह जले हैं
ये जो ढेर हैं ये जो खंडर हैं
माज़ी की गलियाँ-कूचे हैं
जिन को देखना बस में नहीं था
ऐसे भी मंज़र देखे हैं
कौन दिलों पर दस्तक देगा
यादों ने दम साध लिए हैं
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