कोई माज़ी के झरोकों से सदा देता है
कोई माज़ी के झरोकों से सदा देता है
सर्द पड़ते हुए शोलों को हवा देता है
दिल-ए-अफ़सुर्दा का हर गोशा छनक उठता है
ज़ेहन जब यादों की ज़ंजीर हिला देता है
हाल-ए-दिल कितना ही इंसान छुपाए यारो
हाल-ए-दिल उस का तो चेहरा ही बता देता है
किसी बिछड़े हुए खोए हुए हमदम का ख़याल
कितने सोए हुए जज़्बों को जगा देता है
एक लम्हा भी गुज़र सकता न हो जिस के बग़ैर
कोई उस शख़्स को किस तरह भुला देता है
वक़्त के साथ गुज़र जाता है हर इक सदमा
वक़्त हर ज़ख़्म को हर ग़म को मिटा देता है
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