कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं
कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं
दिल वो आँसू जो किसी आँख से छलका भी नहीं
रूठ कर बैठ गई हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद
राह में अब कोई जलता हुआ सहरा भी नहीं
आगे कुछ लोग हमें देख के हँस देते थे
अब ये आलम है कोई देखने वाला भी नहीं
दर्द वो आग कि बुझती नहीं जलती भी नहीं
याद वो ज़ख़्म कि भरता नहीं रिसता भी नहीं
बादबाँ खोल के बैठे हैं सफ़ीनों वाले
पार उतरने के लिए हल्का सा झोंका भी नहीं
(946) Peoples Rate This