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दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है - अहमद राही कविता - Darsaal

दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है

दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है

दोस्तो वो तो क़यामत की घड़ी होती है

जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में

रास्ता रोके तिरी याद खड़ी होती है

जिस ने मर मर के गुज़ारी हो ये उस से पूछो

हिज्र की रात भला कितनी कड़ी होती है

हँसते होंटों से भी झड़ते हैं फ़साने ग़म के

ख़ुश्क आँखों में भी सावन की झड़ी होती है

जब कोई शख़्स कहीं ज़िक्र-ए-वफ़ा करता है

दिल को ऐ दोस्तो तकलीफ़ बड़ी होती है

इस तरह बैठे हैं वो आज मिरी महफ़िल में

जिस तरह शीशे में तस्वीर जड़ी होती है

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