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दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा - अहमद राही कविता - Darsaal

दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा

दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा

दर्द पहलू से जुदा हो के कहाँ जाएगा

कौन होता है किसी का शब-ए-तन्हाई में

ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही ग़म-ए-इश्क़ को बहलाएगा

चाँद के पहलू में दम साध के रोती है किरन

आज तारों का फ़ुसूँ ख़ाक नज़र आएगा

राग में आग दबी है ग़म-ए-महरूमी की

राख होकर भी ये शोला हमें सुलगाएगा

वक़्त ख़ामोश है रूठे हुए यारों की तरह

कौन लौ देते हुए ज़ख़्मों को सहलाएगा

ज़िंदगी चल कि ज़रा मौत के दम-ख़म देखें

वर्ना ये जज़्बा लहद तक हमें ले जाएगा

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