Heart Broken Poetry of Ahmad Rahi (page 1)

Heart Broken Poetry of Ahmad Rahi (page 1)
नामअहमद राही
अंग्रेज़ी नामAhmad Rahi
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि2002
जन्म स्थानLahore

वक़्त की क़ब्र में उल्फ़त का भरम रखने को

मैं तो मस्जिद से चला था किसी काबा की तरफ़

ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं

कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं

जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में

दूर तेरी महफ़िल से रात दिन सुलगता हूँ

दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा

ज़िंदगी

वक़्त की बात

सरगोशी

सराब

नज़्म

लब-ए-गोया

कल और आज

ग़म-गुसारी

ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए

वो बे-नियाज़ मुझे उलझनों में डाल गया

तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है

तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है

तन्हाइयों के दश्त में अक्सर मिला मुझे

क़याम-ए-दैर-ओ-तवाफ़-ए-हरम नहीं करते

क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले

मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं

महफ़िल महफ़िल सन्नाटे हैं

कोई माज़ी के झरोकों से सदा देता है

कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं

कोई बतलाए कि क्या हैं यारो

कभी तिरी कभी अपनी हयात का ग़म है

कभी हयात का ग़म है कभी तिरा ग़म है

जिस राह से भी गुज़र गए हम

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