चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
इतना ख़ूँ-रंग था जैसे किसी मा'सूम की लाश
तारे उस रात भी चमके थे मगर इस ढब से
जैसे कट जाए कोई जिस्म-ए-हसीं क़ाश-ब-क़ाश
इतनी बेचैन थी उस रात महक फूलों की
जैसे माँ जिस को हो खोए हुए बच्चे की तलाश
पेड़ चीख़ उठते थे अमवाज-ए-हवा की ज़द में
नोक-ए-शमशीर की मानिंद थी झोंकों की तलाश
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