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हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते - अहमद नदीम क़ासमी कविता - Darsaal

हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते

हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते

दिल की तहज़ीब को तोहमत नहीं बनने देते

लब ही लब है तो कभी और कभी चश्म ही चश्म

नक़्श तेरे तिरी सूरत नहीं बनने देते

ये सितारे जो चमकते हैं पस-ए-अब्र-ए-सियाह

तेरे ग़म को मिरी आदत नहीं बनने देते

उन की जन्नत भी कोई दश्त-ए-बला ही होगी

ज़िंदा रहने को जो लज़्ज़त नहीं बनने देते

दोस्त जो दर्द बटाते हैं वो नादानी में

दर-हक़ीक़त मिरी सीरत नहीं बनने देते

फ़िक्र फ़न के लिए लाज़िम मगर अच्छे शायर

अपने फ़न को कभी हिकमत नहीं बनने देते

वो मोहब्बत का तअल्लुक़ हो कि नफ़रत का 'नदीम'

राब्ते ज़ीस्त को ख़ल्वत नहीं बनने देते

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