Love Poetry of Ahmad Mushtaq
नाम | अहमद मुश्ताक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Mushtaq |
जन्म की तारीख | 1933 |
जन्म स्थान | Lahore |
ये वो मौसम है जिस में कोई पत्ता भी नहीं हिलता
तमाशा-गाह-ए-जहाँ में मजाल-ए-दीद किसे
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती है
मुझे मालूम है अहल-ए-वफ़ा पर क्या गुज़रती है
मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए
जहान-ए-इश्क़ से हम सरसरी नहीं गुज़रे
इश्क़ में कौन बता सकता है
इस माअ'रके में इश्क़ बेचारा करेगा क्या
गुज़रे हज़ार बादल पलकों के साए साए
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले
अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील
ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है
वही उन की सतीज़ा-कारी है
उजला तिरा बर्तन है और साफ़ तिरा पानी
उदास कर के दरीचे नए मकानों के
टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तिरे दीवाने हर रंग रहे तिरे ध्यान की जोत जगाए हुए
शाम-ए-ग़म याद है कब शम्अ' जली याद नहीं
शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया
सफ़र नया था न कोई नया मुसाफ़िर था