मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
एक सुब्ह-ए-जमाल की आवाज़
दिन से फ़ुर्सत कभी मिले तो सुनो
शाम का साज़ रात की आवाज़
गूँजता है अभी तराना-ए-शौक़
वही आहंग है वही आवाज़
टेढ़े-मेढ़े मुड़े-तुड़े मुखड़े
टूटी-फूटी कटी-फटी आवाज़
बड़े दुख झेल कर कमाई है
जो भी है ये बुरी-भली आवाज़
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