मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया
मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया
आती जाती रहीं शामें कोई आया न गया
रात बिस्तर पे खुले चाँद में सोता था कोई
मैं ने चाहा कि जगाऊँ तो जगाया न गया
एक मुद्दत उसे देखा उसे चाहा लेकिन
वो कभी पास से गुज़रा तो बुलाया न गया
घेरे रहती थी उसे एक जहाँ की नज़रें
फिर जो देखा तो वो उस आन में पाया न गया
सर उठाते ही कड़ी धूप की यलग़ार हुई
दो क़दम भी किसी दीवार का साया न गया
था मुक़र्रर कि मुलाक़ात रहेगी उस से
वो तो पहुँचा था मगर मुझ से ही आया न गया
(945) Peoples Rate This