Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d638f74c29d7b2cc8435382b4a33cc52, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए - अहमद मुश्ताक़ कविता - Darsaal

इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए

इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए

वो बात जो तुम से कह न सके उसे बार-ए-दिगर करने के लिए

कभी ज़िक्र किया तिरी ज़ुल्फ़ों का और जाती शाम को रोक लिया

कभी याद किया तिरे चेहरे को आग़ाज़-ए-सहर करने के लिए

फ़ुटपाथ पे भी सोने न दिया तिरे शहर के इज़्ज़त-दारों ने

हम कितनी दूर से आए थे इक रात बसर करने के लिए

उस आँख ने जिस की क़िस्मत में सच-मुच के दर-ओ-दीवार न थे

ख़्वाबों के नगर आबाद किए हसरत की नज़र करने के लिए

इस बेहिस दुनिया के आगे किसी लहर की पेश नहीं जाती

अब बहर का बहर उछाल कोई इसे ज़ेर-ओ-ज़बर करने के लिए

(821) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye In Hindi By Famous Poet Ahmad Mushtaq. Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye is written by Ahmad Mushtaq. Complete Poem Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye in Hindi by Ahmad Mushtaq. Download free Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye Poem for Youth in PDF. Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Umr Ki Aur Zarurat Hai Wahi Sham-o-sahar Karne Ke Liye with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.