Heart Broken Poetry of Ahmad Mushtaq
नाम | अहमद मुश्ताक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Mushtaq |
जन्म की तारीख | 1933 |
जन्म स्थान | Lahore |
मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में
यही दुनिया थी मगर आज भी यूँ लगता है
उम्र भर दुख सहते सहते आख़िर इतना तो हुआ
मिलने की ये कौन घड़ी थी
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
जाने किस दम निकल आए तिरे रुख़्सार की धूप
हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'
होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
भूल गई वो शक्ल भी आख़िर
बला की चमक उस के चेहरे पे थी
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है
ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है
ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
ये कौन ख़्वाब में छू कर चला गया मिरे लब
ये हम ग़ज़ल में जो हर्फ़-ओ-बयाँ बनाते हैं
वही उन की सतीज़ा-कारी है
उजला तिरा बर्तन है और साफ़ तिरा पानी
उदास कर के दरीचे नए मकानों के
टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में