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लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का - अहमद महफ़ूज़ कविता - Darsaal

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का

अब के देखा तो नया रंग है वीराने का

बनने लगती है जहाँ शेर की सूरत कोई

ख़ौफ़ रहता है वहीं बात बिगड़ जाने का

हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब

कोई इम्काँ ही नहीं लौट के घर जाने का

दिल के पतझड़ में तो शामिल नहीं ज़र्दी रुख़ की

रंग अच्छा नहीं इस बाग़ के मुरझाने का

खा गई ख़ून की प्यासी वो ज़मीं हम को ही

शौक़ था कूचा-ए-क़ातिल की हवा खाने का

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