Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a891ffbdd0cc05e17655651a75e884e7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे - अहमद ख़याल कविता - Darsaal

क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे

क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे

ये किन हाथों हज़ारों लोग मारे जा रहे थे

सुनहरी जल-परी देखी तो फिर पानी में कूदे

वगर्ना हम तो दरिया के किनारे जा रहे थे

समुंदर एक क़तरे में समेटा जा रहा था

शुतुर सूई के नाके से गुज़ारे जा रहे थे

चमन-ज़ारों में ख़ेमा-ज़न थे सहराओं के बासी

हरे मंज़र निगाहों में उतारे जा रहे थे

सभी तालाब फूलों और किरनों से भरा था

बदन ख़ुश-रंग पानी से निखारे जा रहे थे

(810) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The In Hindi By Famous Poet Ahmad Khayal. Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The is written by Ahmad Khayal. Complete Poem Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The in Hindi by Ahmad Khayal. Download free Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The Poem for Youth in PDF. Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The is a Poem on Inspiration for young students. Share Qayamat Se Qayamat Se Guzare Ja Rahe The with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.