जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया
जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया
मैं दश्त दश्त भटकने का जब इरादा किया
मैं नासेहान की सुनता हूँ और टालता हूँ
सो क़ुर्ब-ए-हुस्न छुटा और न तर्क-ए-बादा किया
महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक
तिरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या
हज़ार रंग में जल्वा-नुमा था हुस्न-ओ-जमाल
दिल और शोख़ हुआ उस को जितना सादा किया
वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'
सो मैं ने दामन-ए-दिल और कुछ कुशादा किया
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