Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ec7b60ca7af39902e3c932fbb2369dd4, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ग़ुबार-ए-अब्र बन गया कमाल कर दिया गया - अहमद ख़याल कविता - Darsaal

ग़ुबार-ए-अब्र बन गया कमाल कर दिया गया

ग़ुबार-ए-अब्र बन गया कमाल कर दिया गया

हरी-भरी रुतों को मेरी शाल कर दिया गया

क़दम क़दम पे कासा ले के ज़िंदगी थी राह में

सो जो भी अपने पास था निकाल कर दिया गया

मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हो गया लहू वफ़ा को रो गया

लड़ाई छिड़ गई तो मुझ को ढाल कर दिया गया

गुलाब-रुत की देवियाँ नगर गुलाब कर गईं

मैं सुर्ख़-रू हुआ उसे भी लाल कर दिया गया

तू आ के मुझ को देख तो ग़ुबार के हिसार में

तिरे फ़िराक़ में अजीब हाल कर दिया गया

वो ज़हर है फ़ज़ाओं में कि आदमी की बात क्या

हवा का साँस लेना भी मुहाल कर दिया गया

(792) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya In Hindi By Famous Poet Ahmad Khayal. Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya is written by Ahmad Khayal. Complete Poem Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya in Hindi by Ahmad Khayal. Download free Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya Poem for Youth in PDF. Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Ghubar-e-abr Ban Gaya Kamal Kar Diya Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.