दाना-ए-गंदुम-ए-बेदार उठाने लगा हूँ

दाना-ए-गंदुम-ए-बेदार उठाने लगा हूँ

ख़ाक हूँ ख़ाक का आज़ार उठाने लगा हूँ

कुर्रा-ए-हिज्र से होना है नुमूदार मुझे

मैं तिरे इश्क़ का इंकार उठाने लगा हूँ

लौ ने सरदार किए रक्खा है शब भर तुम को

ऐ चराग़ो मैं ये दस्तार उठाने लगा हूँ

ये खुली जंग है और जंग भी है अपने ख़िलाफ़

इस लिए अपने तरफ़-दार उठाने लगा हूँ

एक आवाज़ मिरी नींद उड़ा देती है

इब्न-ए-आदम तिरे आसार उठाने लगा हूँ

(779) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun In Hindi By Famous Poet Ahmad Kamran. Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun is written by Ahmad Kamran. Complete Poem Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun in Hindi by Ahmad Kamran. Download free Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun Poem for Youth in PDF. Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Dana-e-gandum-e-bedar UThane Laga Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.