Love Poetry of Ahmad Kamal Parwazi
नाम | अहमद कमाल परवाज़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Kamal Parwazi |
वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं
शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था