तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
जिस से मरता हूँ उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(864) Peoples Rate This
अगर कट-फट गया था मेरा दामन
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था
मिरी आदत मुझे पागल नहीं होने देती
ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना
मैं क़सीदा तिरा लिक्खूँ तो कोई बात नहीं
ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता