अगर कट-फट गया था मेरा दामन
तुम्हें सीना पिरोना चाहिए था
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तुम मेरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना
मैं ने इस शहर में वो ठोकरें खाई हैं कि अब
ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है
वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में