फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
जाने क्यूँ आप को अच्छा भी ग़लत लगता है
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
आप की हर्फ़-अदाई का ये आलम है कि अब
पेड़ पर शहद का छत्ता भी ग़लत लगता है
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
ऐसे मौक़े पे निशाना भी ग़लत लगता है
शाख़-ए-गुल काट के त्रिशूल बना देते हो
क्या गुलाबों का महकना भी ग़लत लगता है
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