Heart Broken Poetry of Ahmad Kamal Parwazi
नाम | अहमद कमाल परवाज़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Kamal Parwazi |
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में
मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं
कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है