बे-ज़ारी की आख़िरी साअत
जब पहाड़ ढे जाएँगे
अपने ही बोझ से
समुंदर डूब जाएँगे
अपनी ही गहराई में
सूरज जल जाएँगे
अपनी ही आग में
तो एक आदमी
देख रहा होगा ये मंज़र
बे-ज़ारी के साथ
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जब पहाड़ ढे जाएँगे
अपने ही बोझ से
समुंदर डूब जाएँगे
अपनी ही गहराई में
सूरज जल जाएँगे
अपनी ही आग में
तो एक आदमी
देख रहा होगा ये मंज़र
बे-ज़ारी के साथ
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