मगर वो दिया ही नहीं मान कर के
मगर वो दिया ही नहीं मान कर के
बहुत हम ने देखा है जी जान कर के
कभी दिल को भी सैर कर जाओ साहब
ये ग़ुंचा भी हैगा गुलिस्तान कर के
नज़र इस सरापे में सौ जा से पलटी
ज़ुलेख़ाई यूसुफ़िस्तान कर के
वो जिस रोज़ निकलें जग उजियारने को
ये दिल भी दिखा लाइयो ध्यान कर के
जनाब आप हूर ओ मलक होंगे लेकिन
समझिएगा आशिक़ को इंसान कर के
तिरी लाला-ज़ारी सलामत कि हम भी
खड़े हैं कोई ग़ुंचा अरमान कर के
मसीह ओ ख़िज़्र सर-ब-कफ़ फिर रहे हैं
कोई उस पे मरना है आसान कर के
मिरी किश्त-ए-जाँ पर से गुज़रा है 'जावेद'
सहाब-ए-जुनूँ ज़ोर-ए-बारान कर के
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