शीराज़ की मय मर्व के याक़ूत सँभाले

शीराज़ की मय मर्व के याक़ूत सँभाले

मैं कोह-ए-दमावंद से आ पहुँचा हिमालय

होवे तो रहे शीशा-ओ-आहन की हुकूमत

काँसी की मिरी तेग़ है मिट्टी के प्याले

हर शख़्स ब-अंदाज़-ए-दिगर वासिल-ए-शक था

उठा मैं तिरी बज़्म से ईक़ान सँभाले

अब इश्क़-ए-नवर्दी ही ठिकाने से लगाए

शो'ला न जलाए मुझे गिर्दाब उछाले

होने की ख़बर भी न तिरा हिज्र-ज़दा दे

भर लेवे कभी आह कभी शम्अ' जला ले

बोसे का तलज़्ज़ज़ु हो कभी तौफ़ की राहत

अरमान मिरा ये दिल-ए-काफ़िर भी निकाले

इबहाम के रेशों से बना बाग़-ए-तख़य्युल

हो जाए कभी चश्म-ए-तहय्युर के हवाले

(925) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale In Hindi By Famous Poet Ahmad Jahangeer. Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale is written by Ahmad Jahangeer. Complete Poem Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale in Hindi by Ahmad Jahangeer. Download free Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale Poem for Youth in PDF. Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale is a Poem on Inspiration for young students. Share Shiraaz Ki Mai Marw Ke Yaqut Sambhaale with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.