हूँ कि जब तक है किसी ने मो'तबर रक्खा हुआ

हूँ कि जब तक है किसी ने मो'तबर रक्खा हुआ

वर्ना वो है बाँध कर रख़्त-ए-सफ़र रक्खा हुआ

मुझ को मेरे सब शहीदों के तक़द्दुस की क़सम

एक तअना है मुझे शानों पे सर रक्खा हुआ

मेरे बोझल पाँव घुंघरू बाँध कर हल्के हुए

सोचने से क्या निकलता दिल में डर रक्खा हुआ

इक नई मंज़िल की धुन में दफ़अतन सरका लिया

उस ने अपना पाँव मेरे पाँव पर रक्खा हुआ

तू ही दुनिया को समझ परवर्दा-ए-दुनिया है तू

मैं यूँही अच्छा हूँ सब से बे-ख़बर रक्खा हुआ

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