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रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़ - अहमद हुसैन माइल कविता - Darsaal

रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़

रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़

क्या नहीं इंसाँ की गर्दन पर धुआँ बत्ती चराग़

कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन-ओ-ज़ाहिर का हाल

है अंधेरा घर में और बाहर धुआँ बत्ती चराग़

दूद-ए-अफ़्ग़ान-ओ-रग-ए-जान-ओ-सुवैदा दिल में है

बंद है क़िंदील के अंदर धुआँ बत्ती चराग़

तूर पर जा कर चराग़-ए-तूर क्यूँ देखे कोई

क्या मकानों में नहीं पत्थर धुआँ बत्ती चराग़

हो मुआफ़िक़ क्यूँकर ऐ परवाने साया-गुस्तरी

है मुख़ालिफ़ ज़ेर-ए-बाल-ओ-पर धुआँ बत्ती चराग़

काँपता है हाथ तासीर-ए-दिल-ए-बेताब से

मैं करूँ रौशन तो हो मुज़्तर धुआँ बत्ती चराग़

सूरत-ए-बख़्शिश दिखावें काग़ज़-ओ-सत्र-ओ-हुरूफ़

हो अमल-नामा सर-ए-महशर धुआँ बत्ती चराग़

ख़िज़्र है बहरी मुसाफ़िर का मनार-ए-रौशनी

है जहाज़ों के लिए रहबर धुआँ बत्ती चराग़

क्या ज़रूरत रौशनी की बे-ख़ुदी की बज़्म में

ज़ुल्फ़-ए-साक़ी मौज-ए-मय साग़र धुआँ बत्ती चराग़

शो'ला-रूयों के मुक़ाबिल रंग जमता ही नहीं

उड़ न जाए बज़्म से बन कर धुआँ बत्ती चराग़

किस सलीक़े से है रौशन महफ़िल-ए-अर्ज़-ओ-समा

आसमाँ पर चाँद है घर घर धुआँ बत्ती चराग़

सुब्ह तक करते रहे रौशन दिलों से हमसरी

शाम से रौशन नफ़स हो कर धुआँ बत्ती चराग़

इश्क़ की गर्मी ने फूँका पर्दे पर्दे में मुझे

मेरी चादर में मिरा बिस्तर धुआँ बत्ती चराग़

ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार-ओ-नज़र हैं दुश्मन-ए-ईमान-ओ-दीं

लूटने निकले हैं वो ले कर धुआँ बत्ती चराग़

मैं वो ताइर हूँ जो हूँ कम-ख़र्च और बाला-नशीं

एक जुगनू याँ है और घर घर धुआँ बत्ती चराग़

शब को 'माइल' वक़्त-ए-आराइश मुसाहिब थे यही

फूल सुर्मा आइना ज़ेवर धुआँ बत्ती चराग़

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