आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब
आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब
रिंद समझें कि है सादिक़ सहर-ए-जाम-ए-शराब
सब के हाथों पे था शब-भर सफ़र-ए-जाम-ए-शराब
हर ख़त-ए-दस्त बना रह-गुज़र-ए-जाम-ए-शराब
दुख़्तर-ए-रज़ पे गिरें मस्त पतंगों की तरह
शम-ए-महफ़िल हो ये लख़्त-ए-जिगर-ए-जाम-ए-शराब
थाम ले दस्त-ए-सुबू आए जो चलने में लचक
ख़त-ए-बग़दाद हो मू-ए-कमर-ए-जाम-ए-शराब
तूर-ए-सीना का गुमाँ हो ख़ुम-ए-मय पर सब को
इस तरह होश उड़ाओ असर-ए-जाम-ए-शराब
साग़र-ए-मय में नहीं परतव-ए-ख़ाल-ए-साक़ी
है कफ़-ए-दुख़्तर-ए-रज़ में सिपर-ए-जाम-ए-शराब
ख़ाक मय-ख़ाने की बन जाती क़यामत पिस कर
हर क़दम पर जो लचकती कमर-ए-जाम-ए-शराब
आज मय-नोशों का मजमा' है कहाँ ऐ साक़ी
कौन सी बज़्म में है शोर-ओ-शर-ए-जाम-ए-शराब
जितने मय-ख़्वार हैं साक़ी से गले मिलते हैं
सहर-ए-ईद बनी है ख़बर-ए-जाम-ए-शराब
शीशा-ए-मय से उड़ा काग कबूतर की तरह
नामा पहुँचाने चला नामा-बर-ए-जाम-ए-शराब
मौज-ए-सहबा पे गिरा सपना-ए-मीना उड़ कर
है मिरे सामने तेग़-ओ-सिपर-ए-जाम-ए-शराब
मय पिलाता है अगर ढाँप ले सीना साक़ी
तेरे जोबन को लगेगी नज़र-ए-जाम-ए-शराब
आफ़्ताब आ के सिखाता है चलन शब-भर का
रात को होता है अक्सर गुज़र-ए-जाम-ए-शराब
दस्त-ए-साक़ी में रहे दस्त-ए-क़दह-कश में रहे
गर्दन-ए-शीशा-ए-सहबा कमर-ए-जाम-ए-शराब
मस्त करते हैं दो-आलम को यही दो ख़ुद-मस्त
लज़्ज़त-ए-नग़मा-ए-मुतरिब असर-ए-जाम-ए-शराब
क्या ग़ज़ब है कि तिरा होंठ न चूसे 'माइल'
और हो तेरे लबों तक गुज़र-ए-जाम-ए-शराब
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