Ghazals of Ahmad Husain Mail
नाम | अहमद हुसैन माइल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Husain Mail |
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
निकली जो रूह हो गए अजज़ा-ए-तन ख़राब
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़
क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
खड़े हैं मूसा उठाओ पर्दा दिखाओ तुम आब-ओ-ताब-ए-आरिज़
जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम
चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या
आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब