अहमद हुसैन माइल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद हुसैन माइल (page 2)
नाम | अहमद हुसैन माइल |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Husain Mail |
नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे
नई सदा हो नए होंट हों नया लहजा
मुसलमाँ काफ़िरों में हूँ मुसलामानों में काफ़िर हूँ
मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई
मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को
मिटी कुछ बनी कुछ वो थी कुछ हुई कुछ
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर
क्या आई थीं हूरें तिरे घर रात को मेहमाँ
कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल
खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़
जो उन को लिपटा के गाल चूमा हया से आने लगा पसीना
जितने अच्छे हैं मैं हूँ उन में बुरा
जलसों में ख़ल्वतों में ख़यालों में ख़्वाब में
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
है हुक्म-ए-आम इश्क़ अलैहिस-सलाम का
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
दूर से यूँ दिया मुझे बोसा
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
चाक-ए-दिल से झाँकिए दुनिया इधर से दीन उधर
बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा
अगरचे वो बे-पर्दा आए हुए हैं
आसमाँ खाए तो ज़मीन देखे
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट