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उस के नाम जो मुझे नहीं जानती - अहमद हमेश कविता - Darsaal

उस के नाम जो मुझे नहीं जानती

नहीं 'हमेश' ऐसा मत होने दो

अभी तो तुम्हें इस्म देना है

उस रोटी के टुकड़े को

जिसे दुनिया भर की भूक से चुराया गया

और ग़रीबी किस देश की देव-माला है

तुम्हें इस्म देना है

नौजवानी के दिनों की उस उमंग को

या इस के नाम के पेड़ की टूटी हुई एक पत्ती को

या अधूरी सच्चाइयों के नाम पर जलाई गई किताबों को

देखो हाँ अभी अभी एक ख़याल मिट्टी पर रक्खा गया है

कहीं उसे ला-वतन न कर दिया जाए

मोखों पर हँसने के लिए भी तो एक ही जैसी हँसी रह गई है

यहाँ तक कि बिजली चली जाती है और अंदेशा होता है कि उस अर्से में मैं उस आवाज़ में

बिल्ली के पंजों पंजों से खुरुंचने वाली सफ़्फ़ाकी बढ़ गई हो

एक आदमी का दिल है कि आसानी से नहीं मनता

वर्ना औरतों गालियों से कुत्ते बिल्ली तो मर ही जाते हैं

ये जानते हुए भी कि मोहब्बत को अदाकारियों से बचाए रखने के लिए तुम्हें इंतिज़ार करना है

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