रेहान-सिद्दीक़ी की याद में
जाने कितने ही रातें होंगी
जाने कितने ही दिन होंगे
जो तुम्हारी बेदारी और नींद में
चाय की प्यालियों में
और मोहब्बत करने वालों के दिलों में ज़िंदा हैं
मैं तुम्हारी आवाज़ तो अब भी सुन रहा हूँ
कई दिनों से मेरा फ़ोन जो बंद रहा
वो अब मेरी रूह में खुल गया है
और हमारी रूहों के दरमियान कोई फ़ासला नहीं
कौन कहता है कि तुम्हें दुनिया पसंद नहीं आई
तो तुम ने दुनिया छोड़ दी
अभी तो तश्कील के कई सफ़्हात की तरतीब बाक़ी है
अभी तो तुम्हें बहुतों के ज़मीर पर पड़े हुए
पर्दे उठाने हैं
अभी तो शीबा ओवन में जो केक तय्यार कर रही है
उसे खाना बाक़ी है
अभी तो इंजला तुम से मेरी जो शिकायत करने वाली है
कि मैं ने ये नहीं किया
मैं ने वो नहीं किया
गोया तुम्हारे मश्वरों पर
नए सिरे से कान धरना है
अभी तो कई काम बाक़ी हैं
भाभी को बनारसी सिवइयाँ तय्यार करनी हैं
अभी तो तासीर तौसीफ़ और शरजील
तुम्हारी आवाज़ सुनने के मुंतज़िर हैं
अभी तो महबूब-'ख़िज़ाँ' तुम्हें अबद-उल-अबाद के लिए
सिगरेट छोड़ने का मशवरा देने वाले हैं
मैं तुम्हारी आवाज़ तो अब भी सुन रहा हूँ
बाग़-ओ-बहार आदमी तो कभी नहीं मरता
तुम्हारी बाग़-ओ-बहार आवाज़ तो मैं अब भी सुन रहा हूँ
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