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चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया - अहमद हमदानी कविता - Darsaal

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

आँधियाँ ऐसी चलीं फिर दिल हमारा बुझ गया

अब तो हम हैं और समुंदर और हवाएँ और रात

दूर से करता था झिलमिल इक किनारा बुझ गया

घूरते हैं लोग बैठे क्या ख़लाओं में कि अब

हर इशारा बुझ गया है हर सहारा बुझ गया

हर नज़र के सामने अब बे-कराँ पहली सी रीत

जगमगाता बात करता दश्त सारा बुझ गया

जम गई है बर्फ़ कैसी हर तरफ़ लोगो यहाँ

राख तक ठंडी पड़ी क्या क्या शरारा बुझ गया

शहर चुप हैं रास्ते ख़ामोश हैं चेहरे उदास

बस बगूले उड़ रहे हैं हर नज़ारा बुझ गया

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